खाजूवाला, खाजूवाला क्षेत्र में शनिवार को नाचना से फ़ाजिल्का पैदल ही जा रहे मजदूरों के जत्थे पहुंचे। दंतौर मार्ग से जत्थे के रूप में पहुंचे ये 28 मजदूर शनिवार सुबह खाजूवाला पुलिस के हत्थे चढ़े। खाजूवाला पुलिस ने इनके नाम पते पूछकर इन्हें स्थानीय प्रशासन की सहायता से राजकीय माध्यमिक कन्या पाठशाला में रुकवाया। स्थानीय गुरुद्वारा और बिश्नोई समाज की मदद से इनके खाने-पीने की व्यवस्था की गई है।
इन मजदूरों ने बताया कि वे पंजाब के फ़ाजिल्का क्षेत्र के रायसिख परिवार से संबंध रखते हैं। 17 दिन से पैदल चलते-चलते खाजूवाला पहुंचे हैं। ये सभी मजदूर फसल काटने के लिए नाचना गए थे। पिछले 3 दिनों से ये मजदूर भूखे थे। वहीं महिलाओं की हालत तो और भी खस्ता थी। ध्यान रहे इससे पहले भी खाजूवाला क्षेत्र में मजदूरों के जत्थे लगातार आ रहे हैं, जिन्हें स्थानीय राजकीय छात्रावास में प्रशासन की तरफ से रुकवाया गया है। वहीं विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं द्वारा भी लगातार इनके खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है। वहीं कुछ दिन पूर्व दो महिला व दो पुरूषों को 7 पीएचएम के पास रोका गया और उनसे पूछने पर मालूम हुआ कि वह 3 दिन से लगातार पैदल चलकर रणजीतपुरा के पास से आए है। वहीं उन्हे हरियाणा जाना था। जिनमें से एक महिला तो 8 माह की गर्भवति है। इन चारों मजदूरों को भी खाजूवाला में ही रूकवाया गया।
आखिर चैक पोस्ट पर क्या कर रहे है नाका प्रभारी
मोहनगढ़ नाचना क्षेत्र से खाजूवाला आने के लिए सैकड़ों चैक पोस्ट रस्ते में आती है। लेकिन इन चैक पोस्टों पर शायद ड्यूटी के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति ही हो रही है। ये मजदूर खाजूवाला के दंतौर, बल्लर, भुरासर आदि क्षेत्रों से होकर आए है। लेकिन इन्हे वहां कही भी नहीं रोका गया। अगर खाजूवाला प्रशासन व पुलिस भी कुम्भकरणी नीन्द में होती तो ये मजदूर यहां से भी निकलकर आगे चले जाते। तो इनकी स्थिति और दयनीय हो जाती। प्रशासन व पुलिस को चाहिए कि वह अपनी सीमाओं की रक्षा अन्य जिलों की तरह करें अन्यथा किसी कोरोना पोजिटिव का खाजूवाला आना हुआ तो शायद इस गाँव के हाल बद से बदतर होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। अभी तक खाजूवाला क्षेत्र में कोई भी कोरोना पॉजिटिव नहीं है।
काश! इन मजदूरों के लिए भी कोई सरकार बसों की व्यवस्था करती
बहरहाल इनके रहने खाने-पीने की व्यवस्था तो हो गई, लेकिन पीछे रह गए हैं कुछ सवाल। क्या राज्य सरकार जो लॉकडाऊन और राज्यों की सीमा सील होने के बाद भी कोटा से 252 बसों में भरकर यूपी-बिहार के साढ़े सात हजार से ज्यादा कोचिंग छात्रों को वापस भेज रही है, वो सरकार क्या इन गरीब मजदूरों की सुध ले पाएगी? जो पंजाब और अन्य दूर दराज के क्षेत्रों से फसल काटने और मजदूरी करने के लिए राजस्थान के इस सीमावर्ती इलाके में आए हैं। शायद नहीं! क्योंकि ये मजदूर किन्ही अफसरों के बच्चे नहीं है, जो महंगे कोचिंग संस्थानों में पढ़ सकें। शायद कई दिनों से भूखे होने के कारण इनकी आवाज में इतना दम नहीं रह गया है कि वो सरकार और उसके नुमाइंदों तक पहुंच सके।