खाजूवाला, आजादी के बाद अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के वर्गों को सरकारी नोकरियों और प्रमोशन में आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान कर इन को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास किया गया था। हाल में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा अपने एक फैसले में कहा गया की पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नही है। यह राज्य सरकार विवेक पर निर्भर है। राज्य सरकार इसके लिए बाध्य नही है। जबकि देश भर में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग आज भी भेदभाव व उत्पीडन का शिकार है।
देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम CAA लागू किया गया। इसके तहत राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर संधारित किया जाना है। देश आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है जिसको भर पेट खाना नही मिल रहा है। झूठन खाने को मजबूर है। जिसके पास आसमान के अलावा सिर ढकने को कोई आसरा नही है। रहने के लिए फूटपाथ के अलावा कोई जगह नही है। ऐसे में एक बहुत बड़े हिस्से द्वारा नागरिकता संबंधी अपने व अपने पुरखो के दस्तावेज उपलब्ध कराना असम्भव होगा। आरक्षण को सविधान की 9वीं अनुसूचि में डालकर रोज रोज की छेड़छाड़ से रोका जाए। माननीय न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायिर की जाए देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को बिना किसी दस्तावेज के नागरिकता दे दी जाए।