सरकार द्वारा बढ़ाए गए 2 प्रतिशत कृषि कल्याण कोष शुल्क का विरोध


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खाजूवाला, राजस्थान सरकार द्वारा 2 प्रतिशत कृषि कल्याण कोष शुल्क बढ़ाने के विरोध में भाजपा मंडल खाजूवाला के मंडल अध्यक्ष जगविन्द्र सिंह सिद्धू के नेतृत्व में किसानों व व्यापारियों ने मुख्यमंत्री के नाम खाजूवाला राजस्व तहसीलदार विनोद गोदारा को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में शिवकुमार मारू ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा कृषि कल्याण कोष शुल्क लगाया गया हैं। जिसमें प्रत्येक कृषि फसल को बेचने व खरीदने पर प्रति 100 रुपये टैक्स के रूप में राजस्थान सरकार को देने होंगे। क्योंकि 4000 प्रति किविंटल के भाव की फसल पर लगभग प्रति किविंटल 100 रुपये का भार पड़ेगा। जिससे किसानों की फसलें 100 रुपये भाव से नीचे बिकेगी। यह भार किसानों पर ही आएगा। इसलिए राज्य सरकार को चाहिए था कि महामारी से आये संकट से किसान को राहत प्रदान की जाए। लेकिन सरकार ने किसानों को राहत देने की जगह टैक्स बढ़ाकर संवेदनहीनता का परिचय दिया हैं। जबकि किसान पिछले काफी समय से ऋण माफी की मांग कर रहे थे, परन्तु उसे अनसुना कर सरकार ने किसान विरोधी निर्णय लिया है। दूसरी तरफ कृषि जिंसों के कारोबार पर पहले से ही 1.60 फीसदी टैक्स था, उस पर दो प्रतिशत की बढ़ोतरी होने से यह 3.60 हो गया। जिससे खाद्य वस्तुओं पर महंगाई की मार पड़ेगी। लॉकडाउन में 40 दिनों से सभी के काम ठप्प पड़े है, ऐसे में यह महंगाई कोई में खाज का काम करेगी और सरकार जो कोरोना से उतपन्न हालातों के आमजन के साथ खड़े होने का ढोंग कर रही हैं वो झूठा साबित हो रहा हैं। वहीं किसानों ने सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू करवाकर अतिशीघ्र भुगतान कर किसानों को राहत देने की मांग की है।
भारतीय किसान संघ ने भी विरोध व्यक्त करते हुए बताया कि कृषि जिंसों का कीमत तय नही होने के कारण कृषि जिंसों की बाजार में मांग अनुसार कीमतों के उतार चढ़ाव आता रहता है ऐसे में कृषि जिंसों के व्यापार के दौरान उस पर लगाये गए किसी भी प्रकार के शुल्क की वसूली किसानों से किये जाने से रोक पाना संभव नही है। कृषि जिंसों का आदान प्रदान देश भर में खुला होने के कारण किसानों को प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य प्राप्त करने का मौका मिलता है लेकिन फसल विपणन सभी किसानों के लिए आसान नही है ऐसे में स्थानीय बाजार में किसानों को उचित मूल्य मिले तभी सभी किसान उसका लाभ ले सकते है। इसके लिए स्थानीय मंडियां विकसित हो ये आवश्यक है ये तभी सम्भव है जब सरकार इस हेतु मंडियों में लगने वाले शुल्क को पड़ोसी राज्यों के मंडी शुल्क के अनुरूप प्रतिस्पर्धात्मक रखे।