R.खबर, ब्यूरो। देश मे आदर्श आचार सहिता के लागू होंने के बाद अब भाजपा व कोंग्रेस सहित अन्य दलो ने दमखम दिखाना शुरु कर दिया है। वही अब एक-एक सीट पार्टीयो के लिये महत्वपूर्ण हो गई है। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों (Loksabha Elections 2024) में बीजेपी का वोटशेयर 5.4 प्रतिशत था, उस वक्त उसने अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी ने 73 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा तो वोट शेयर 6.6% था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में, जब बीजेपी, अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी तो वोट शेयर 9.63 प्रतिशत था।
पंजाब: लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही बीजेपी की नजर ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर है। बात अगर पंजाब की करें तो यहां पर मुकाबला बहुकोणीय हो गया है। यहां अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल पहले से मौजूद हैं, लेकिन फिर भी भाजपा पर सबकी खास निगाहें टिकी हैं। यह जानना जरूरी है कि आखिर बीजेपी ने पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया और सीमावर्ती राज्य में उसका गेमप्लान आखिर है क्या? यह देखना भी अहम है कि आने वाले दिनों में कई दल-बदल भी देखने को मिलेंगे।
बीजेपी का पंजाब में गेम प्लान ?
- बीजेपी को उम्मीद है कि वह हिंदू वोट को एकजुट करने के लिए एक बार फिर से राम मंदिर के मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी, दरअसल पंजाब में यह हिंदू वोट परंपरागत रूप से कांग्रेस को जाता रहा है।
- पंजाब में 38.5 प्रतिशत की बड़ी आबादी है और बीजेपी यह देखना चाहेगी कि क्या वह उस वोटबैंक को मजबूत कर सकती है।
- 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोटशेयर 5.4 प्रतिशत था, उस वक्त उसने अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2022 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी ने 73 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा तो वोट शेयर 6.6% था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में, जब बीजेपी, अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी तो वोट शेयर 9.63 प्रतिशत था।
- अराजकता से लाभ: अकाली दल ग्रामीण इलाकों में फिर से उबरने की कोशिश कर रहा हैं, कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है और AAP निश्चित तौर पर दो साल पहले मिला जन समर्थन पंजाब में खो चुकी है। ऐसे में सबकी नजरें बीजेपी पर टिकी हैं।
- लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन यह भी तय करेगा कि पार्टी के पास पंजाब में अपना जनाधार बढ़ाने की क्षमता है या नहीं।
- पंजाब में बीजेपी ने जाट सिख नेताओं को पार्टी में शामिल किया गया है, जिनमें कुछ लोग काफी रसूखदार हैं। पूर्व राजदूत तरनजीत संधू जिनके दादा एसजीपीसी (सिख प्रबंधन निकाय) के संस्थापकों में से थे। मनप्रीत बादल, अमरिंदर, रवनीत सिंह बिट्टू जैसे अन्य नेताओं के जरिए बीजेपी सिख समुदाय में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
- किसानों का विरोध और सिख विरोधी छवि: किसानों का विरोध, कनाडा में निज्जर की हत्या में शामिल होने के आरोप से बीजेपी की सिख विरोधी छवि का पता चलता है। इस छवि को सुधारना बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। गुरुद्वारों में प्रधानमंत्री मोदी का नियमित दौरा और सिख समुदाय के नेताओं के साथ उनकी बैठकें पंजाब में बीजेपी की छवि को सुधारने का काम कर सकती हैं। दरअसल पंजाब के लोग हमेशा ही नए विकल्प की तलाश में रहते हैं।
पंजाब: लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही बीजेपी की नजर ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर है। बात अगर पंजाब की करें तो यहां पर मुकाबला बहुकोणीय हो गया है। यहां अकाली दल, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी जैसे दल पहले से मौजूद हैं, लेकिन फिर भी भाजपा पर सबकी खास निगाहें टिकी हैं। यह जानना जरूरी है कि आखिर बीजेपी ने पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया और सीमावर्ती राज्य में उसका गेमप्लान आखिर है क्या? यह देखना भी अहम है कि आने वाले दिनों में कई दल-बदल भी देखने को मिलेंगे।