बीकानेर के 535 वें स्थापना दिवस पर जानें कुछ रोचक बातें

R खबर, पश्चिमी राजस्थान का एक अनूठा शहर बीकानेर जो कि लंबा-चौड़ा रेगिस्थान माना जाता है। जिसकी पूरे विश्व भर में एक अलग पहचान है। यहां के भुजिया, पापड़, रंग-बिरंगी संस्कृति, मूछें, पान, नमकीन, ऊंट उत्सव व हजार हवेलियां एक अलग पहचान रखते हैं। जिसकी वजह से बीकानेर का नाम पूरे विश्व में एक बड़ी पहचान बनाता है।

आज हम बात करेंगे यहां पर रहने वाले अनोखे व निराले व्यक्तियों के बारे में जिसमें से एक पान व्यापारी है जो कि 20 लाख रुपए के गहने पहनकर पान बेचते हुए नजर आते हैं। यह शख्स फूलसा जो बीकानेर में अपने पान के साथ गोल्ड के लिए भी फेमस है। फूलचंद सेवग यानी फूलसा 62 साल उम्र है जो कि आभूषण पहनने के काफी शौकीन है। सामान्य पान की दुकान होने के बाद भी उन्होंने पूरे शौक से 20 लाख रुपए के गहने जिसमें लाखों रुपए के कर्णफूल व सोने के हार जोकि इनका अलग पहनावा है ऐसा किसी और के देखने को नहीं मिलता और जिसके साथ सोने का भारी-भरकम कड़ा यह सब पहनने के बाद वह एक आम पान की दुकान लगाते हैं। यह पान जो आम से लेकर खास इंसान खा चुके हैं। जिसमें शामिल मध्य प्रदेश के मंत्री और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत जो कि इनका पान समय-समय पर मंगवाते व खाते रहते हैं।

अब बात करते हैं फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में रहे ड्राइवर की जोकि कुछ साल पहले रिटायर हो चुके हैं। उनकी पहचान एक रौबीले के रूप में बन गई है। बीकानेर के नृसिंह किराडू उर्फ मनोहर 71 साल के हैं। जिनको फॉसिल्स यानी जीवश्रम एकत्र करने का ऐसा शौक चढ़ा कि उन्होंने अपने घर में ही म्यूजियम बना दिया। मनोहर सिंह बताते हैं, कि उनके पास करीब 20 हजार फॉसिल्स थे जिसमें काफी उन्होंने रिसर्च को बांट दिए। जोधपुर के विश्वविद्यालय व बीकानेर के डूंगर कॉलेज के साथ ही नई दिल्ली के कई रिसर्च प्रसन उन से फॉसिल्स ले गए हैं। किराडू ने इन्हीं फॉसिल्स का जब डूंगर कॉलेज के बॉटनी लेक्चरर डॉ. राकेश हर्ष ने अध्ययन किया तो इनकी उम्र करीब 5000 करोड़ साल से 11 हजार करोड़ साल पुरानी निकाली। डॉ हर्ष ने तकनीकी रूप से इनकी उम्र का पता लगाया। मनोहर सिंह बताते हैं कि इनके पास एक ऐसा जीवाश्म भी है। जिसमें पेड़ की टहनी पर हजारों साल पहले की छिपकली नजर आती है। यह छिपकली अब पत्थर हो गई। किराडू बताते हैं कि तब कुछ ऐसा हुआ था कि छिपकली पेड़ पर थी और अचानक से सब कुछ मिट्टी में दब गया। तब से अब तक छिपकली का शव वैसा का वैसा पड़ा रहा है। जीवाश्म देखने पर छिपकली साफ नजर आती है। सरकार ने उन्हें इस अनूठे काम के लिए राज्य स्तर पर सम्मानित भी किया है।