रितेश यादव
खाजूवाला, कहते है हर चीज की कदर हो ही जाती है। ऐसा ही भारत पाक अन्र्तराष्ट्रीय सीमा पर बसे कस्बे खाजूवाला के साथ हुआ। एक समय था जब यहां का क्षेत्र वीरान, सुनसान तथा ऊँचे-ऊँचे रेत के टीलों हुआ करते थे। लेकिन समय बदला और क्षेत्र में नहर का आगमन हुआ। नहर 1978 में इस क्षेत्र में आई। जिसके साथ-साथ इस क्षेत्र में लोगों का आना भी शुरू हो गया। बाहर से आए लोगों ने यहां अपना आशियाना बनाया और इस खाजूवाला को अपना बनाकर यहां रहने लगे। यहां के किसानों ने कड़ी मेहनत कर यहां की जमीन को उपजाऊ बनाया। जिससे आज यहां की जमीन फसल रूपी सोना उगा रही है।
खाजूवाला क्षेत्र पूर्व में बेरियांवाली के नाम से जाना जाता था तथा आजादी से पूर्व व आजादी भी यहां ज्यादातर मुस्लिम समाज के लोगों का निवास होता था। आजादी से पूर्व यहां लोगों का जीना बड़ी कठिनाईयों भरा था। वहीं आजादी के बाद में भी कई दशकों तक यह क्षेत्र वीरान पड़ा था। महाराजा गंगासिंह द्वारा गंगानहर का कार्य करवाना व इंदिरा गाँधी नहर इस क्षेत्र में आना यहां के लिए सोने पर सुहागा हो गया। पूर्व में यहां ना कोई सड़क थी ना कोई रास्ते थे। बीकानेर जिले से पूरे दिन में एक ही बस आया करती थी। जिसमें महिलाएं, पुरूष, भेड़, बकरियां व उनका सामान भी होता था। इस क्षेत्र में सरकार द्वारा 1975 से जमीनों का अलॉटमेंट शुरू हुआ। यहां पूर्व में खाजूवाला से पहले 61 हैड कॉलोनी बसी थी। यहां से लोगों का खाजूवाला आना 1985 तक हुआ। जिसके बाद यह क्षेत्र चमन बन गया। यहां की जमीनें पंजाब की जमीनों को भी पछाडऩे लग गई। 1995 में बीबीसी लंदन द्वारा खाजूवाला मण्डी को देश की सबसे तेज गति से विकास करने वाली मण्डी भी बताया लेकिन नीयती को कुछ और ही मंजूर था। 1998 के बाद इस क्षेत्र को अकाल का सामना करना पड़ा। जिससे काफी संख्या में यहां से लोगों ने पलायन भी कर लिया। लेकिन कुल मिलाकर स्थिति आज की ऐसी है कि यहां लोग विभिन्न संस्कृति के होने के बावजूद भी अमरचैन से रह रहे है। पूरे देश में चाहे साम्प्रदायिकता के नाम पर कितनी भी आग लगी हो लेकिन इस क्षेत्र ने ऐसा मंजर नहीं देखा। यहां पर बसी सभी जातियों के लोग पहले देश को सर्वोपरिय मानते है। आज इस क्षेत्र के गाँव-गाँव ढ़ाणी-ढ़ाणी तक सड़के बन चुकी है। सीमा पर बसे गाँवों में भी लोग आसानी से रह रहे है। वहीं सीमा की तारबन्दी के पास लोग अपनी जमीनों में फसल का बिजान भी करते है।