हाल स्तर पर टिका रहा क्रूड तो तेल आयत की दर आधी हो सकती है.


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नई दिल्ली, कोरोना वायरस का असर पुरे विश्व में हर तरफ दिख रहा है, जिसके चलते व्यापार पे भी काफी असर पड़ा है। एक तरफ कोरोना वायरस की वजह से व दूसरी तरफ सऊदी अरब की तरफ से क्रूड कीमतों में भारी कटौती के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भले ही कच्चा तेल औंधे मुंह गिर गया हो लेकिन भारत के लिए यह फायदेमंद साबित हो सकता है। अगर कच्चा तेल मौजूदा स्तर के आसपास टिका रहा तो इससे देश का तेल आयात बिल 50 फीसदी कम हो सकता है।

वित्त वर्ष 2020 में भारत के तेल आयात बिल में 10 फीसदी की भारी गिरावट की संभावना है। कोरोना वायरस फैलने और अब ओपेक और रूस के बीच बातचीत के नतीजों ने कच्चे तेल की कीमतों को लगभग .$30 प्रति बैरल पर ला दिया है। पिछले साल सितंबर में व इस साल जनवरी में कच्चे तेल का भाव 70 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा था। वित्त वर्ष 2021 में तेल आयात बिल मौजूदा तेल आयात बिल से 50 फीसदी कम 64 अरब डॉलर पर आ सकता है। इसके पहले वित्त वर्ष 2016 में क्रूड आयात बिल इस स्तर तक गिर गया था। वित्त वर्ष 2016 में क्रूड का दाम 26 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गया था। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल PPAC के अनुसार, देश का तेल आयात वित्त वर्ष 2019 के 227 मिलियन टन के मुकाबले 2020 में गिरकर 225 मिलियन टन रहने का अनुमान है। आयात बिल 112 अरब डॉलर के मुकाबले 6 फीसदी घटकर 105 अरब डॉलर रह सकता है। यह गणना चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-दिसंबर के लिए कच्चे तेल की औसत कीमत 64 डॉलर प्रति बैरल पर आधारित है। जनवरी-मार्च के आयात में 66 डॉलर प्रति बैरल के कच्चे तेल के मूल्य के आधार पर काम किया गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि फिलहाल कच्चे तेल की कीमतें जनवरी में 70 डॉलर के मुकाबले $30 प्रति बैरल पर आ गया है। विश्लेषकों का कहना है कि इससे तेल आयात पर बड़ी बचत होगी। यदि 2020 के दौरान कच्चे तेल की कीमतें 30 डॉलर के आसपास रहती है, तो तेल आयात बिल कई साल के निचले स्तर तक लुढ़क सकता है। संभावना है कि यह वित्त वर्ष 2021 में तेल आयात बिल गिरकर 64 अरब डॉलर हो सकता है, जो वित्त वर्ष 2016 के समान है, जब क्रूड की कीमतें 26 डॉलर प्रति बैरल से नीचे फिसल गई थीं। कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की गिरावट से देश का आयात बिल लगभग 2,900 करोड़ रुपये कम होता है।