R.खबर ब्यूरो। अत्यधिक ठंड से बचाव के लिए बनाई प्लास्टिक टनल व मल्चिंग तकनीक का किया उपयोग।
जानकारी के अनुसार कई किसानों ने नवाचार के तौर पर उद्यानी फसलें जैसे ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, टिंडा, खीरा आदि अगेती-बेमौसम फसलें लगा रखी हैं। क्षेत्र के किसान तकनीकी नवाचार के बूते बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बताया जा रहा है कि एक ही समय में एक साथ एक से अधिक फसलें उपजाकर अंतरवर्ती (इंटरक्रोपिंग) फसल उत्पादन से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। इसके लिए खेती-बाड़ी के तौर-तरीकों में बदलाव करना होगा। इसी तर्ज पर नोहर के चक 28 व 30 एनटीआर के कई किसानों ने नवाचार के तौर पर उद्यानी फसलें जैसे ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, टिंडा, खीरा आदि अगेती/बेमौसम फसलें लगा रखी हैं। जिला स्तरीय पुरस्कृत प्रगतिशील किसान शेर मोहम्मद बताते हैं कि वे नवाचार आधारित तकनीकी कृषि अपना कर पिछले कई वर्षों से बेमौसम की सब्जियों की अच्छी पैदावार कर रहे है।
बूंद-बूंद सिंचाई बेहतर विकल्प:-
किसानों ने बताया कि खारे पानी से सिंचाई करने से जमीन बंजर होती है इसलिए जमीन को बंजर होने से बचाने के लिए वह खेतों में ड्रिप संयंत्र लगाकर बूंद बूंद सिंचाई करते हैं। इससे पैदावार भी अच्छी होती है।
50 हजार रुपए लागत:-
किसान श्योकत अली बताते हैं कि कम भूमि में अधिक उत्पादन लेने के लिए बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति बेहतर उपाय है। उन्होंने व उनके भाई ने मल्चिंग का उपयोग कर लगभग पांच बीघा खेत में ककड़ी, तरबूज, करेला, खरबूजा, टिंडा आदि लगाए हैं। सर्दी से बचाव के लिए प्लास्टिक टनल बना दी है। इसमें प्रति बीघा लगभग 50 हजार रुपए लागत आई है।
मल्चिंग का उपयोग:-
किसानों का कहना है कि मल्चिंग शीट लगाकर सब्जियों की खेती की जा रही है। इस शीट के दोनों तरफ छेद में हाथ से बीज लगाए जाते हैं। एक शीट से दूसरी शीट के बीच लगभग चार से पांच फीट की दूरी रखी जाती है। सर्दी से बचाव व तापमान बढ़ाने के लिए इसके ऊपर प्लास्टिक शीट लगाकर ग्रीन हॉउस का रूप दिया जाता है।
इनका कहना है-
डॉ. गुलाब चौधरी, बागवानी विशेषज्ञ ने बताया कि आधुनिक तकनीकों को उपयोग में लेते हुए नवाचार कर किसान बागवानी की ओर अग्रसर हो रहे हैं। कई जगहों पर उत्पादकता धीरे-धीरे कम हो रही है। ऐसे में प्लास्टिक मल्चिंग का प्रयोग एक बेहतर विकल्प साबित हो रहा है। बेमौसम सब्जियों के उत्पादन के लिए लो टनल तकनीक अपनाना लाभकारी है। इन अगेती फसलों के उत्पादन से किसानों को मार्केट में उपज का अधिक मूल्य भी मिलता