BJP बनाम INDIA : कम वोटिंग से किसे होगा फायदा और किसका होगा नुकसान ? एक्सपर्ट्स से समझें वोटर्स की ‘सुस्ती’ क्यो।


rkhabar rkhabar

लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे फेज में 63.00% मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। जबकि 2019 में इन्हीं सीटों पर 70.05% लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था। आइए समझते हैं कम वोटिंग टर्न आउट के क्या है मायने? इसका किसे होगा फायदा और कौन झेलेगा नुकसान?

R. खबर, ब्यूरो। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए पहले और दूसरे फेज (Second Phase Voting) का मतदान पूरा हो गया है। इस बीच कम वोटिंग टर्न आउट  (Lower Voting Turn Out) या कम वोटिंग ट्रेंड को लेकर नई बहस और सियासी गुणा-गणित का दौर शुरू हो गया है। 19 अप्रैल को 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 102 सीटों पर वोटिंग हुई। पहले फेज की वोटिंग में करीब 63% वोट पड़े। जबकि इन्हीं सीटों पर 2019 के आम चुनाव में 66.44% वोटिंग हुई थी। 26 अप्रैल (शुक्रवार) को 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की कुल 88 सीटों पर मतदान हुआ। दूसरे फेज में 63.00% मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। जबकि 2019 में इन्हीं सीटों पर 70.05% लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था। आइए समझते हैं कम वोटिंग टर्न आउट के क्या है मायने? इसका किसे होगा फायदा और कौन झेलेगा नुकसान।

दूसरे फेज में कहां कितनी हुई वोटिंग?

दूसरे फेज में त्रिपुरा में सबसे ज्यादा करीब 78.63% वोटिंग हुई। महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में सबसे कम 54% के आसपास वोट डाला गया। असम में 70.68% लोगों ने घरों से निकलकर वोट डाला। छत्तीसगढ़ में 73.05% वोटिंग दर्ज की गई। जम्मू-कश्मीर में 71.63% लोगों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। कर्नाटक और केरल में क्रमश: 67% और 65.28% वोटिंग हुई। मध्य प्रदेश में कुल 56.60% लोगों ने वोट डाला। पश्चिम बंगाल में 71.84% लोगों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। राजस्थान में 63.74%, मणिपुर में 77.18% लोगों ने वोटिंग की। (ये प्रोविजनल आंकड़े हैं, इनमें अपडेशन हो सकता है)। त्रिपुरा पूर्व सीट पर सबसे ज्यादा 78.1% वोटिंग हुई। जबकि मध्य प्रदेश की रीवा सीट पर 45.9% मतदान हुआ।

वोटिंग घटने या बढ़ने के क्या हैं मायने?

कम वोटिंग ट्रेंड को लेकर लोकनीति, CSDS के को-डायरेक्टर संजय कुमार ने कहा, “वोटरों के लिहाज से देखें तो कम वोटिंग टर्न आउट अच्छी खबर नहीं है। इस समझ में आता है कि लोकसभा चुनाव को लेकर वोटरों में कुछ उदासीनता है। अगर हम 2019 के आम चुनावों से तुलना करें, तो उदासीनता साफ दिखाई पड़ती है। कम वोटिंग से किसे इलेक्टोरल गेन मिलेगा और किसका लॉस होगा। वास्तव में इसका कोई हिसाब नहीं होता है। कई बार वोटिंग टर्न आउट गिरता है, फिर भी सरकारें जीत कर केंद्र में आती हैं। कई बार वोटिंग टर्न आउट कम होने से सरकारें हारती भी हैं। बीते 17 लोकसभा चुनावों में वोटिंग ट्रेंड देखें, तो 5 बार मतदान घटा है और 4 बार सरकार बदल गई। 7 बार मतदान बढ़ा, तो 4 बार सरकार बदली।

वरिष्ठ पत्रकार नरेश कौशिक कहते हैं, कम वोटिंग से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान होगा, ये कहना मुश्किल है। अभी तक ऐसा होता रहा है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, उसके प्रति चुनाव में मतदाताओं का उत्साह कुछ कम रहता है। जिसका ज्यादा रुतबा दिखता है, मतदाता उसके पक्ष में मतदान ज्यादा करते हैं। लेकिन पिछले कुछ चुनावों से ऐसा नहीं हो रहा है। मतलब ये एक सेट पैटर्न नहीं है। हमें ये बात मान लेनी होगी कि हमारा मतदाता बहुत चतुर है। भारत का मतदाता बहुत ध्यान से वोट करता है। वोटर तीन तरह के होते हैं। पहला- जिन्होंने बीजेपी और पीएम मोदी को वोट देने का फैसला पहले ही कर लिया है। दूसरा- विपक्ष वाला मतदाता भी अपना माइंड सेट बनाकर रखता है. तीसरा-स्विंग वोटर्स को लेकर ही असली लड़ाई होती है।

उत्तर प्रदेश में भी कम हुआ मतदान:-

दूसरे फेज में यूपी की 8 सीटों पर वोटिंग हुई। इनमें से 5 सीटों का वोटिंग टर्न आउट सामने आया है। उत्तर प्रदेश में कुल 54% के आसपास वोटिंग हुई। अमरोहा में अभी तक सबसे ज्यादा 62% वोटिंग हुई है। जबकि 2019 के इलेक्शन में इस सीट पर 71% वोटिंग हुई थी। मथुरा में पिछले चुनाव में 61% मतदान हुआ था। लेकिन इस बार अब तक 47% वोटिंग हुई।
 
वोटिंग में सुस्ती को लेकर पॉलिटिकल एनालिस्ट संदीप शास्त्री कहते हैं, हमें दो कारणों को समझने की जरूरत है। क्या हीटवेव की वजह से कम वोटर्स घरों से निकलकर बूथ तक पहुंचे? या पॉलिटिकल हीट ही इसबार कम रहा? जब भी कम वोटिंग ट्रेंड होता है, तब भी कमिटेड वोटर्स तो वोटिंग के लिए जाते हैं, लेकिन स्विंग वोटर्स चीजें तय नहीं कर पाते। इसके बाद भी ऐसा कोई सेट पैटर्न नहीं है, जिसके आधार पर ये कहा जा सके कि अगर वोटिंग कम हुई, तो रूलिंग पार्टी को नुकसान है और अपोजिशन पार्टी को फायदा होने वाला है। 

संदीप शास्त्री कहते हैं, कम वोटिंग ट्रेंड जरूर इसलिए बुरी खबर है कि भारतीय मतदाता अभी भी तटस्थ हैं। कम वोटिंग ट्रेंड का राष्ट्रीय स्तर पर भले ही कोई बात न निकल आए, लेकिन एक विशेष सीट पर और विशेष क्षेत्र पर कम वोटिंग के अपने मायने और अपनी वजहें हो सकती हैं।

क्या केरल में बीजेपी का खाता खुलेगा?

केरल की सभी 20 सीटों पर चुनाव हो गए। यहां पिछले 3 चुनावों में बीजेपी के हाथ खाली हैं। इस बार बीजेपी ने यूडीएफ और एलडीएफ के बीच में एंट्री मारी है। पीएम मोदी ने केरल में कम से कम 10 सीटें जीतने की बात कही है। दूसरे फेज में शशि थरूर की तिरुवनंतपुरम सीट पर 31.3 फीसदी वोटिंग हुई। पथानामथिट्टा में 29%, त्रिशूर में 28.2%, अट्टिंगल 24.7% और पलक्कड़ में 21.3% वोटिंग हुई। क्या बीजेपी केरल में कोई गेम कर सकती है? इसके जवाब में पॉलिटिकल एनालिस्ट संदीप शास्त्री कहते हैं, केरल में जरूर बीजेपी जोर लगा रही है। लेकिन आपको लोकल पॉलिटिक्स को भी देखना पड़ेगा। एलडीएफ और यूडीएफ के बीच जो पॉलिटिक्स हो रही है, उसका असर भी दिखेगा। राज्य में अभी एलडीएफ की सरकार है। एलडीएफ ये कोशिश कर रही है कि लोकसभा चुनाव में भी अच्छा करे। यूडीएफ की कोशिश रहेगी कि अपना पिछला प्रदर्शन बनाए रखे और उसे सुधारे भी। थर्ड फोर्स को इन चीजों का भी सामना करना होगा।

वहीं लोकनीति, CSDS के को-डायरेक्टर संजय कुमार ने कहा, केरल में बीजेपी रास्ता तो जरूर बना रही है। अगर हम जनाधार के लिहाज से देखें, तो बीजेपी का वोट केरल में निश्चित तौर पर बढ़ रहा है। क्या बीजेपी कोई सीट जीत सकती है, ये कहना मुश्किल है। ये जरूर है कि तिरुवनंतपुरम, पथानामथिट्टा, त्रिशूर, अट्टिंगल और पलक्कड़ में त्रिकोणीय मुकाबला है। हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर बीजेपी इन सीटों पर नंबर दो हो जाए, या एक-आध सीटों पर जीत भी हासिल कर ले।

क्या कांग्रेस कर्नाटक में जीत दोहरा पाएगी?

कर्नाटक की 28 सीटों में से 14 सीटों पर दूसरे फेज में वोटिंग हुई। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 28 में से 25 जीती थी। लेकिन पिछले साल हुई विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बाज़ी पलट दी और राज्य की सत्ता में आ गई। ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराएगी या कांग्रेस लोकसभा सीटों पर कब्जा कर पाएगी? इसके जवाब में वरिष्ठ पत्रकार नरेश कौशिक कहते हैं, मुझे केरल के बारे में तो मुश्किल लगता है, लेकिन कर्नाटक में संभावनाएं हैं। कर्नाटक का इतिहास देखें, तो विधानसभा में जिस तरह से वोट होता है, उससे अलग लोकसभा का वोट होता है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में फिर से वोट हो सकता है।

महाराष्ट्र में असली शिवसेना कौन?

इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार नरेश कौशिक कहते हैं, लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र एक महत्वपूर्ण राज्य है। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। ये बहुत बड़ा नंबर है। शिवसेना में दरार और दो फाड़ के बाद पहली बार पता चलेगा कि असली शिवसेना कौन है। ये पहली बार हो रहा है कि उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना अब बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ रही है। ये राज्य का एक डार्क एरिया है। यहां फिलहाल वेट एंड वॉच वाली स्थिति है।