बीकानेर, पुरे देश दुनिया में लॉकडाउन है, कोरोना का प्रभाव कम करने के लिए सभी तीज त्योहारों मेलो पर पाबंदी लगा दी गयी है इसी के चलते बीकानेर भी इस साल आखातीज पर पुरे नगर में सन्नाटा देखने को मिलेगा. नगर बीकाणा अपनी परंपराओं और संस्कृति को जीने वाला शहर है। हिलमिल कर जीवन का आनंद उठाने वाला शहर। हर तीज-त्यौहार को हिलमिल कर मनाने वाला शहर। पर इस बार यहां सन्नाटा पसरा है।
25 अप्रैल को शहर की स्थापना उमंग-उत्साह के साथ मनाते हुए हर घर की छत पर पतंग उङाने। बोई काट्या और उडा उडा का उद्घोष कर पेच लङाने का मनमोह लेने वाला नजारा इस बार नजर नहीं आएगा। शहर भी सहमत है। समवेत स्वर में कह रहा है, महामारी का यह संकट खत्म हो जाएगा तब हम उसी उत्साह के साथ पतंगे उउड़ाकर खुशियां मनाएंगे, परंपराओं को निभाएगे।
संवत् 1545 में शनिवार के दिन राव बीकाजी ने बीकानेर नगर की स्थापना की थी। नगर स्थापना से पूर्व और स्थापना के मौके पर राव बीका ने लक्ष्मीनाथ मंदिर के गढ गणेश मंदिर परिसर में शाही पतंग यानी चंदा उड़ाकर नगर की स्थापना का संदेश दिया था। तब से ही आखाबीज और आखातीज अक्षय तृतीया पर चंदा उङाने की परंपरा रही है। शहरवासी उस परंपरा को निभाते हुए गवरा दादी पून दे, टाबरिया रो चंदो उङे गाते हुए चंदा उड़ाते हैं।
बीकानेर के संस्थापक प्रथम राजा राव बीकाजी ने नगर की स्थापना कर लक्ष्मी नाथ मंदिर जी मंदिर परिसर में सूर्य देव को नमस्कार करते हुए कपड़े से बनी शाही पतंग को अपनी 22 गज लंबी पगड़ी को डोर के रूप में काम लेकर शाही पतंग को उड़ाया था। तब पतंग उत्तर पूर्व दिशा में आसमान में उड़ती चली गई और विस्तार के इस संकेत को मान राव बीकाजी ने इसी दिशा में शहर का विस्तार किया था।
नगर स्थापना के मौके पर हर साल परंपरागत चंदा बनाकर गढ़ गणेश मंदिर में चंदा उड़ाने वाले गणेश व्यास बताते है। यह समय पूरे विश्व पर महामारी के संकट का समय है। मनुष्य जीवित और सुरक्षित रहेगा तब ही परंपराएं जिंदा रहेगी। हमने यही निर्णय लिया है की इस बार हम चंदा नहीं उड़ाएंगे। इसकी बजाय छत पर चंदा रखकर केवल पूजन करेंगे। संकट से बचाव के लिए यही जरूरी है। जब स्थितियां सही हो जाएगी तब चंदा उड़ाकर खुशियां मनाएंगे।
बीकानेर की स्थापना के बाद से ही शहर में पतंग उड़ाने की परंपरा यहां के लोकजीवन में रची बसी है। पहले यहां शाही पतंग बनाकर उड़ाई जाती थी जिन्हें मथैरण जाति के परिवार बनाया करते थे। फिर शहर की सभी जातियों की ओर से आपस में चंदा इकठ्ठा कर खरीदी जाती थी तब से शाही पतंग को चंदा कहा जाने लगा।
रियासत काल में चंदे पर यह फरमान लिखा होता था।” ओ चंदो …. पंचायत रौ छै। ई चंदे ने जकौ भी लूटी, कपङो, फाङसी तो बो राज रो गुनेहगार हुवैला। इयेरै हर्जाना रै रूप में बीनै बीरी राशि रुपयों एक वसूलो जावैला। जिकौ कपङेला, लूटैला बो वापस पुगावेला। राज रै आदेश सू।